इस संसार में तीन प्रकार के मानव होते है |
इस लेख को जब आप पढेंगे और समझेंगे तो, मानव को भी समझने में आपको बहुत असानी होगी |
इस लेख को समझने से पहले आपको, जीवन को समझना होगा |
जीवन क्या है ?
जो मानव जीता है |
लेकिन जीवन को किस तरह से जीता है ?
मानव जीवन को उसी तरह से जीता है, जैसी उसकी समझ होती है |
ठीक इसी प्रकार से, जीवन को जीने की, तीन अवधारणा होती है, और ये मानव भी इन तीनो में से किसी एक अवधारणा को लिए जीवन को जीता है,
ये अवधारणा इस प्रकार है,
1. एक मानव जो आत्मा, परमात्मा में विश्वास करता है |
2. एक मानव जो आत्मा परमात्मा को नहीं मानता |
3. और तीसरा मानव, है और नहीं, के असमंजस में रहता है |
अब जानते है जीवन का उद्धेश्य
हर मानव का जीवन में एक ही उद्देश्य होता है,
शांति प्रिय जीवन,
Reed More :-
धर्म क्या है ? परिवार क्या है ? रिश्तेदार क्या है ? जाति क्या है ? गोत्र क्या है ?
मेरा आखरी प्रश्न ? क्या हमारे शरीर में आत्मा होती है ?
जो आत्मा और परमात्मा को मानता है, वह जीवन में हमेशा मोक्ष के लिए भटकता रहता है, लेकिन समझने वाली बात यह है, उसे मोक्ष क्या होता है, पता भी नहीं होता |
जो व्यक्ति आत्मा, परमात्मा को नहीं मानता वह जीवन को निडर होकर जीता है, न वह मोक्ष के लिए भटकता है, और न ही स्वर्ग नर्क के चक्कर में पड़ता है, वह किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराता, बल्कि खुद को और समाज को प्रकृति को दोषी मानता है |
और एक तीसरा होता है, जो कभी आत्मा को मानता है, और कभी नहीं है कहता है, वह समाज के भ्रमजाल में फंसा होता है, उसे यह भी पता नहीं होता की वह आत्मा को मानता है, या नहीं मानता है, अगर कोई देवी देवता को पूज रहा है, इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं, की वह आत्मा को परमात्मा को मानता है |
वह तो उस भ्रम में पड़ा है, जिसे जैसा बताया गया है, जैसी उसकी मानसिकता बनाई गई उसी अनुसार से जी रहा है |
अगर आपको समाज का उद्धार करना है तो, इन तीनो विचारधारा के लोगो को एक मंच में लाना होगा |
– योगेन्द्र कुमार चरौदी
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