जीवन क्या है?
जीवन दो शब्दो से मिलकर बना है,
- जी, और
- वन
जी अर्थात जो “जीवित” है, उसे “जी” से सम्बोधित किया गया है|
और वन सम्बोधन का अर्थ, यह सारा संसार, गाँव, शहर, खेत, मैदान, जंगल, धरती, पानी, जहाँ तक यह “जी” जा सकता है, जी के लिए यह सारा जहाँ “वन” है|
जी का इस वन में “जीना” ही जीवन है|
यहाँ स्पष्ट कर दूँ, वन का सम्बन्ध पेड़ पौधों से भरे जंगल से नहीं है|
मानव एक जीव है, एक जी है, इसी तरह से पेड़ पौधे, अन्य पशु, जानवर भी एक प्रकार का जी है|
इस जी की मृत्यु उस समय हो जाती है, जब जी मर जाता है, जब जीव को चलाने वाले आवश्यक पोषण जी तक नहीं पहुँच पाते तो “जीव और जी” की मृत्यु हो जाती है|
मानव जन्म से पशु के समान होता है| धीरे से मानव को बोलना सिखाया जाता है, मानव ने अपनी भावना को व्यक्त करने के लिए शब्द और भाषा का निर्माण किया है|
मानव को “मन” से सम्बोधित किया जाता है, मन एक वचन है| तो वही, एक से अधिक मानव को मनखे कहकर सम्बोधित किया जाता है, यह बहुवचन है|
मानव को मन कहना ही सबसे उचित है, क्योकि इस संसार में सबसे तेज गति से मन से कार्य करने वाला, तथा “मन” से जीने वाला जीव यह मानव शरीर रूपी “मन” ही है|
जीवन किसके लिए होता है?
मानव में “मन” होता है, और मानव मन से ही कार्य करता है, इसलिए यह कह सकते है, मानव “मन” से जीता है|
मानव का मन किसके लिए होता है? मानव का मन स्वयं के लिए होता है, अब अपने उपर निर्भर करता है, इस मन को किसके लिए कर्म करूँ|
वास्तव में यह जी को वन जीने के लिए मिला हुआ है, अब जिसका जी है, उसके ऊपर निर्भर करता है, वह अपने जी को वन में किसके लिए जीता है|
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धन्य है, वे लोग जो अपने जीवन को दुसरे के जीवन के जीवन को ऊँचा उठाने के लिए लगा देते है|
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