एक समय था, जब गरीबो को और गरीब बनाने के रंग-रंग के उपाय किये जाते थे, मै मानता हूँ वह नियम आज भी चल रहे है, मगर खुली आँखों से देख पाना मुश्किल लगता है, तो आज आपके आँख की वह पट्टी हटाने की गुस्ताखी कर रहा हूँ, आप मुझे माफ़ कीजिये गा,
ग़रीबी के उद्धार से पहले ग़रीबी को समझना जरुरी है, उसके बाद ही उद्धार हो सकता है,
गरीब उसे कहते है, जो दिन वक्त की खाना, और घर की छोटी से जरूरतों को जो पूरा कर लेता है, निम्न गरीब उसे कहते है जो तीन वक्त की रोटी और अन्य चीजो की जरुरत की पूर्ति नहीं कर पाता,
गरीबो में सबसे जायदा दलित है,
मगर दलितों का उद्धार क्यों नहीं हो पा रहा है, इसका कारन क्या है, मेरे अनुसार से दलितों के उद्धार ना हो पाने का 70 प्रतिशत कारन वे स्वंम है, और 30 प्रतिशत बाहरी लोगो का, जो नहीं चाहते है, दलितों को उद्धार हो, जो चाहते है, की दलित गुलाम बने रहे, और नहीं चाहते की दलित स्वतंत से जीवन जी सके,
दलितों का अगर उद्धार हो सकता है, तो वह शिक्षा के माध्यम से ही संभव हो सकता है, एक बात मुझे हमेशा याद आता है, की
आचार्य चाणक्य ने कहाँ था, वह पिता और माता अपनी संतान के दुश्मन है, जो अपने बच्चे को शिक्षा नहीं दिलाते,
बहुत हो गया अपने बच्चे को शिक्षित करो, क्योकि शिक्षा ही एक ऐसा रास्ता है जो जीवन में उजाला ला सकता है, क्योकि
शिक्षा है तो काम-काज मिलेगा,
शिक्षा है तो समानता मिलेगा,
शिक्षा है तो रोजगारी मिलेगा,
शिक्षा है तो आधिकार मिलेगा,
वह भगवान नहीं आएगा तुम्हारा इंसाफ करने, वह संविधान ही करेगा,
और संविधान को जानने के लिए शिक्षा का ही सहारा है,
बहुत हो गया हम दलितों पर अत्याचार, सिर्फ स्कूल में अपने बच्चों को भर्ती कर देने से काम नहीं चलेगा, उन पर धयान दो,
एक समय भूखे क्यों न रहो, मगर अपने बच्चों को जरुर पढाओ,
अगर काम काज करने बाहर जा रहे हो तो, होस्टल में भरती करके जाओ,
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