आज आपसे व्यक्ति के जीवन से जुडी कुछ अजीबो दास्ताह के बारे में जरुरी, लेख के माध्यम से बाते कर रहा हूँ, आपसे आशा है आप वास्तविकता को स्वीकार करेंगे |
एक सिक्के के दो पहलु होते है, यह आपने जरुर सुना होगा, लेकिन आपसे मै कहना चाहता हूँ, तीन पहलु होते है, जो बीच में लकीर के रूप में होती है,
इसी तरह से दलित शब्द है,
दलित उसे कहते है, जो दल में रहता है, यही इसका वास्तविक रूप है, लेकिन समय के साथ हर चीज के मायने बदल जाते है,
दलित शब्द को समझने के लिए आपको बीच के पहलु को जरुर समझना चाहिए |
इसके लिए वर्ण व्यवस्था को समझना जरुरी है,
यह जो कहानी है, वह हिन्दू धर्म की है,
हिन्दू धर्म में तीन देवता सबसे महत्वपूर्ण माने जाते है,
ब्रम्हा, विष्णु, और शिव,
ब्रम्हा सृष्टी का निर्माण करता, विष्णु पालन करता, और शिव संहार कर्ता इस तरह से माना जाता रहा है,
जो आदमी है, उसे माना जाता है, वह भी ब्रम्हा से पैदा हुए है,
कहानी ऐसी की मुर्खता और अंधविश्वास के मुह छिपाने के जगह ना मिले फिर भी, आज भी जगह बची ही हुई है,
माना जाता है, ब्रम्हा के मुह से, छाती से, पेट से, और पैर से, चार प्रकार व्यक्तियों का जन्म हुआ, जो आगे चलकर चार वर्ण में बदल गए, जो मुह से पैदा हुआ वह, ब्राम्हण, जो छाती से पैदा हुआ, वह छत्रिय, जो पेट से पैदा हुआ, वह वैश्य, और जो पैर से पैदा हुआ वह, सूद्र कहे गए |
इनके कार्य जो चार भागो में विभाजित किया गया,
ब्राम्हण का कार्य सभी को शिक्षा देना,
छत्रिय का कार्य सभी की रक्षा करना,
वैश्य का कार्य सभी खाने का प्रबंध करना,
और सूद्र का कार्य सभी की सेवा करना,
यह जो वर्ण व्यवस्था है, वह हजारो साल पहले से चली आ रही है,
हर प्रकार के धर्म का संबंध इतिहास से होता है,
और इतिहास का संबंध धर्मं और धर्म का सम्बद्ध लेख कहानी से होता है, जैसे आप सभी धर्म में देख सकते है, इसी तरह से हिन्दू धर्म भी पुराने ग्रंथो पर आधारित है,
जैसे रामायण, महाभारत, मनुइस्म्रिति इस तरह से,
भारत देश में आज से कई हजार साल पहले विदेशी आये जिन्हें आर्य कहते है, धीरे धीरे वे देवताओ के संपर्क में आये, और उनकी सेवा करते करते भारत देश में अपना अस्तित्व बना लिए,
वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म पर आधारित था, अर्थात जो जैसा कर्म करेगा, वैसा ही मान सम्मान पायेगा, और इसे चार वर्ण में विभाजित किया गया, यह वर्ण का आधार मात्र “व्यक्ति को समझने के लिए हुआ था “ | लेकिन धीरे से कुछ लालचीओ ने स्वार्थ के कारन, कर्म को जन्म विहीन कर दिया, और सबसे ऊँचे पद पर जबरदस्ती बैठ गया |
इन्होने देशवासियों के दिमाग में ऐसा कचरा भरा की वह सदियों से रक्त में समां गया |
जो सूद्र थे, वह आज के समय दलित के नाम से जाने जाते है, वास्तव में वर्ण नाम का कोई चीज नहीं है |
आप इसे जितना जल्दी स्वीकार कर लेंगे उतना अच्चा है,
ब्राम्हण के बारे में कहा गया, न तो ब्राम्हण मास खा सकता है, और ना ही जुआ, मंदिरा पी सकता है, इस तरह से कर्म सूद्र कर सकते है,
तो फिर जो ब्राम्हण शराब पीते है, वह सूद्र क्यों नहीं हुए |
इसका अर्थ तो यही हुआ की यह मान्यता ही नहीं और ना वास्तविकता है, यह भ्रम मात्र है,
जिसे स्वार्थ दिखाकर आगे बढाया जा रहा है,
मै अब उन लोगो से पूछना चाहता हूँ, क्या तुम अपनी माँ के कोख से जन्म लिए थे, या पुरुष रूपी ब्रम्हा के पेट के गर्भ से. या सिर में वीर्य का पिटारा था, जिससे तुम जन्म लिए |
सत्य तो यह है, की गर्भ से ही व्यक्ति का जन्म हो सकता है, तो यह कहानी कैसे बढ़ चला,
तो पेड़ में नारियल बांध देना,
सुद्रो को पुराने समय में धन रखने की मनाही थी, उन्हें बस्ती से दूर रखने के प्रयास किया जाता था, आज भी आप देख सकते है, सूद्र ही सबसे जायदा गरीब है,
दलित गाँव के बाहर दल बना कर रहते थे, जिनके कारन आज इन्हें दलित के नाम से जाने जाते है,
दलित का अर्थ बदलकर आज के समय में नीच, अछूत, घृणित, सूद्र, चमार, और भी बहुत, लेकिन तुम यह नहीं हो इस बात को तुम्हे समझना होगा, तुम्हे जागना है, भागना नहीं है,
हमें मिलकर संघर्ष करना है, हमें दलित बनना है, दल में रहना है |
आगे लेख में आगे बढ़े |
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