निजी स्कूल बनाम सहकारी स्कूल
स्पस्ट है की राजनैतिक हालत ठीक नहीं है | अब हम तुलनात्मक रूप से निजी स्कूल एवं सहकारी स्कूल की सुविधाओ एवं गुणवत्ता की बात करते है | सबसे पहले बात करते है सहकारी स्कूल के भवन और उसके भीतर के सुविधाओ की | सहकारी स्कूल में भौतिक सुविधाए पर्याप्त मात्रा में नहीं है | कही छत टपक रही है तो कही बच्चो के बैठने के लिए कुर्सी भी नहीं, कही दीवारों में दरार है, और कही-कही तो स्कूल इतने दुर्गम क्षेत्र में है, जहाँ तक पहचाना भी बड़े मसक्कत का काम है | आए दिन सांप और बिच्छु इन भवनों में घुस जाते है | कही बच्चो के पीने के लिए पानी की व्यवस्था नहीं है | समान खरीदने के लिए आस पास व्यवस्था नहीं है, भवनों में पंखे का अभाव है | पर्याप्त मात्रा में कमरे भी नहीं है | वही दूसरी ओर निजी स्कूल सारी सुविधाए पाई जाती है | उत्तम गुणवत्ता और सुविधायुक्त भवन, बिजली, पानी कुर्सी, टेबल प्ले ग्राउंड आदि अनेक प्रकार की सुविधाए इनमे पाई जाती है, क्योकि इनका संचालन निजी सत्ता के हाँथ में है |
अब बात करते है शिक्षक और शिक्षा के गुणवत्ता की गुणवत्ता के मामले में निजी स्कूल सबसे आगे है | हलाकि ये सवाल उठाया जाता है की सहकारी स्कूल के बच्चे जायदा होशियार होते है | हालाकि ये सवाल उठाया जाता है कि सहकारी स्कूल के बच्चे जयादा होशियार होते है परन्तु ये स्कूल और शिक्षको की महेरबानी नहीं है वो बच्चा वंशानुक्रम रूप से होशियार था | इसलिए अपवाद स्वरुप पढ़लिखकर बड़े मुकाम तक पहुच गया | आप बताइए आज तक आपने सहकारी स्कूल में 3D एनिमेसन से पढाई देखी है | मैंने देखी है – हाँ लेकिन निजी स्कुलो में | सहकारी स्कूल में कोशिका की संरचना को एक शिक्षक ब्लैकबोर्ड पर चाक के माध्यम से समझा रहा है | जबकि निजी स्कूल में कोशिका की संरचना को बच्चे जीवित रूप में एनिमेशन द्वारा देख रहे है और बेहतर तरीके से समझ रहा है, क्योकि उसके आंतरिक भागो की संरचना को बच्चा गहराई में जाकर समझ रहा है, उसके दिमाग में एक स्पस्ट छवि बन रही है, जो कि काल्पनिक नहीं है बल्कि वास्तविक है | ये बच्चा आगे चलकर डॉक्टर बनेगा तो उसके चिकित्सा पध्धति में निश्चित ही गुणवत्ता होगी जबकि सहकारी स्कूल के बच्चे में इस गुणवत्ता का अभाव होगा |
निजी स्कूल में शिक्षक समय के पाबंद है, जबकि सहकारी स्कूल में शिक्षक मनमौजी अपवादों को छोड़कर | सहकारी स्कूलों में शिक्षको का मूल उद्धेश्य केवल सहकारी नौकरी करना है न की बच्चो को जिम्मेदारी पूर्ण पढ़ा कर उनके उज्ज्व्वल भविष्य का निर्माण करना | जबकि निजी स्कूलों के साख को बचाने के लिए भरसक प्रयास किया जाता है, स्कूल का रेपोटेशन डाउन न हो |
हड़प्पा सभ्यता एवं उससे भी पूर्व तथा आज तक इतिस्कारो ने स्वार्थपरख जानकारी ही प्रस्तुत की है, जिसके मूल में स्वच्छता का अभाव है कुंठित मानसिकता की ही प्रधानता है और इसी कारण ही राष्ट की सारी अव्यवस्थाए है |
आपको सतनाम
लेखक- जीवेन्द्र भारती, संपादक- योगेन्द्र कुमार धिरहे
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