संगीत एक स्वतंत्र शाश्त्र है और यह अति सूछ्म और विशिष्ट कला है | जो की अनेक प्रकार के राग रागनियों से आबद्ध है जिसमे सुर एवं ताल के संयोजन से गीत का निर्माण होता है | गीत निर्माण का प्रमुख उद्देश्य मानवीय भावों की यथार्थ अभिव्यक्ति करना है | कभी प्रेमी प्रेमिका के मिलन का संगीत तो कभी उनके विछोह से उत्पन्न पीड़ा का विरह धुन, कभी डोली में बैठी दुल्हन के ह्रदय का भाव तो कभी तन मन में सिहरन उत्पन्न कर देने बारिश और ठंडी हवाओ का धुन | अंततः कहें तो मानव ह्रदय के भावों का प्रस्फुटन ही संगीत है|
संगीत के शास्त्रों से ज्ञात होता है की राग से आबद्ध संगीत में ऐसी शक्ति है जिसमे दीपक राग से दिए जल उठते हैं, यहाँ तक की बारिश भी हो जाती है | संगीत शाश्त्र की जब उत्पाती हुई उस समय संगीत एक साधना थी जिसे हर कोई नही साध सकता था | जबकि आज व्यक्ति दो अक्षर गीत गुनगुना लेने पर अपने आप को संगीत का सम्पूर्ण जानकार मानने लगता है और यह समझने लगता है की संगीत की बस इतना ही है | जबकि वह संगीत के वास्तविक अवधारणा से कोसों दूर है, अभी उसे कम्बा सफ़र तय करना है परन्तु वह खुश है उसे लगता की मंजिल मिल गई है | यह ठीक वैसा ही है जैसे कुएं के भीतर मेंढक की दुनिया | अतः अभी बाजार में जो गाने आ रहे हैं उसमे से 75 प्रतिशत गानों काउद्देश्य केवल मनोरंजन करना है जिसमे हिरोइन का अंग प्रदर्शन चार चाँद लगा रहा है |
अधिकांशतः अभी ऐसा हो रहा है की लोग गाने के विडिओ को देखकर गीत को पसंद करने लगे है यदि उस गीत का हिरोइन ग्लैमरस या खुबसूरत नही है यदि उसका अंग प्रदर्शन एवं नृत्य अच्छा नही है तो उस गीत का कोइ मूल्य नही | अतः यह स्पष्ट कहा जा सकता है की सुन्दर अभिनेत्री और उसका आकर्षक नृत्य ही गीत की उत्कृष्टता का पैमाना है | मैं समझता हूँ की गीत के विडिओ को केवल नग्न आँखों से देखकर ही न पसंद किया जाय बल्कि उसे केवल सुनकर उसके रस को आत्मसात किया जाय|
परन्तु प्रश्न उठता है की वर्तमान में संगीत की ये दशा हुई कैसे, क्यों लोग सरल गीत और डिस्को डांस को पसंद करने लगे हैं जिसमे ज्यादा लयात्मकता रहती है जिस गीत में विशेष संयोजन रहता है वो गीत आज के जनरेशन से परे क्यों है |इसका साधारण सा उत्तर है, मां बाप जिस प्रकार के सभ्यता बच्चों को सिखाते हैं बच्चे वैसे ही सीखते हैं जो परोसा जाता है उसी को खाते हैं वे ये प्रश्न नही करते की इस भोजन से हमें कितनी मात्रा में ऊर्जा मिलेगी और इतनी उनमे समझ भी नही रहती | ये समझ और शिक्षा देना माँ बाप का ही कर्तव्य है |
अतः लोगों की रूचि उनकी पसंद आदि को बदलने में वर्तमान संगीतकारों का ही हाथ है | लेकिन इसके जिम्मेदार केवल वे ही नही हैं कुछ अन्य भी कारक हैं | वर्तमान युग व्यवसाय एवं प्रतिस्पर्धा का युग है प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को समृद्धी के शिखर पर देखना चाहता है सबकी सोंच एवं सपने बड़े है यह स्वाभाविक है | अब व्यक्ति इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगीत का व्यवसायीकरण भला क्यों न करे |
संगीत के इस व्यवसायीकरण से इसका कलात्मक पक्ष समाप्त होता जा रहा है जबकि कला एवं ज्ञान की खोज ही मानव जीवन का चरम लक्ष्य एवं महान उद्देध्य है | भविष्य में हमें ऐसे भी दिन देखने पड सकते हैं जब पुराने संगीतकार, उनके संगीत की शैली आदि के विषय में शोध होगा आधुनिक एवं पुराने संगीतकारों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाएगा |
आज के किसी बच्चे को हनी सिंह के बारे में पूछा जाय तो वह झट से बता देगा की वह कौन है जबकि उसे खय्याम साहब या रफी साहब के के बारे में कुछ भी मालुम नही होगा | कहने का तात्पर्य यह है की हमारी संस्कृति में अच्छी चीजों को अपनाने की प्रवित्ति रही है जबकि आज हम अछि आदतें अच्छी संस्कार को छोड़कर उन चीजों को अपनाने लगे है जिससे हमारी संस्कृति एवं सभ्यता धूमिल होती जा रही है | हमारी
कलाएं हमारे उत्कृष्ट विचार समाप्त होते जा रहे हैं
विचारक – जीवेन्द्र कुमार
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