मंदिर नहीं ये धंधा है, ब्राम्हणों का फंदा है |
बात बहुत गंभीर है, अच्छे से समझयेगा,
एक गाँव में कुछ ब्राम्हण परिवार रहते थे | उनका दिन रोटी दुनिया भर के कर्म कांट उनके यंहा जाना, पूजा पाठ हवन और दान दक्षिणा से चलता था, फिर लोग धीरे-धीरे शिक्षित होने लग गए, क्योकि बाबा साहेब आंबेडकर, ने शिक्षा होने लग गए क्योकि बाबा साहेब आंबेडकर ने शिक्षा का अधिकार दिलवा दिया था |
इन ब्राम्हणों ने अपनी आपसी बैठक बुलाया और दिन रोटी न चलने पर चर्चा किया, कुछ दिन बाद एक ब्राम्हण के घर से रात में एक लम्बी सी पत्थर निकली जो अपने आप प्रकट हुई थी, उन्होंने आस-पास के दलित परिवारों को बताया, देखो हमारे घर देवी प्रकट हुई है, दलितों ने कहाँ क्या हम देख सकते है, और इसी तरह से पुरे गाँव को और पूजा पाठ शुरु हो गया |
धीरे –धीरे आप पास के गाँव को खबर होने लगी, कुछ ब्राम्हण देवी के प्रचार के लिए अन्य गाँव शहर भीख मांगते और गीत गाते प्रचार करते, धीरे –धीरे उस मंदिर के बारे में सब जानने लगे, आप पास में देवी का फोटो, दीप धूम, नारियल, चुनरी बेचने का कार्य गाँव के ब्राम्हण करने लगे |
एक दिन क्या हुआ, जो ब्राम्हण प्रचार में गया था, एक साल बाद वापस आ गया, गाँव के ब्राम्हणों को अमीर देखकर बहुत खुश हुआ, वह मंदिर के पुजारी के पास घर में गुप्त गया और कहाँ “ सब कैसा चल रहा है !” पुजारी ने कहाँ आप माता के दर्शन कर लेवे, इस बात पर प्रचारी बाबा ने कहाँ मै इसी गाँव का हूँ, याद है वो दिन जब देवी प्रकट हुआ है, पुजारी ने पहचानने से इंकार कर दिया |
फिर क्या था, फिर क्या था, उसने गाँव के सभी लोगो को मंदिर की सारी हकीकत बता दी, पर किसी ने यकीन नहीं किया, और उल्टा कहाँ, ब्राम्हण देवता पर इस तरह का आरोप; उसे धक्केमार बहार निकाल दिया गया , फिर बाबा ने अन्य गाँव में सबको बताया रात में हम सब ब्राम्हणों ने मिलकर सुरंग बनाकर पत्थर को निकाला धीरे-धीरे ,एक दिन लोगो को सत्यता का एहसास हुआ, फिर क्या था लोगो ने मिलकर मंदिर को तोड़ दिया, लेकिन उतने साल में पुजारी भगवान से प्रभु से महाप्रभु बन कर घर घर दिवार में लटका मिलता है,
और दलित रोते रोते घूमते फिरते है |
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