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पत्रकार आशुतोष |
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पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी |
पूर्व #आप नेता ‘आशुतोष’ पत्रकार दिल्ली, के मर्म को समझिए एक अलग अंदाज़ में… हमारे वरिष्ठ पत्रकार मित्र नदीम जी की कलम से… उनके फेसबुक वाल से साभार……..
पोस्ट 95 (पत्रकारिता और नेतागीरी का फर्क) : फेसबुक पर एक ट्रेंड देखिए. एक पत्रकार जब नेता बना, तो जनता से कट गया. अमूमन उसकी पोस्ट नहीं दिखती. कभी दिखती भी तो वह मन की बात लिखकर गायब हो जाता. लोग उस पर प्रतिक्रिया देते, पर वह घमंड में चुप रहता. यानी नेता वाले गुमान में. नेता मतलब एलीट. जनता का माई-बाप. कुछ बरस उसने नेतागीरी में काटे कि कहीं कोई पद या मलाई मिल जाए. पर नहीं मिली. उसका स्वामी धोखेबाज निकला. पत्रकार को टोपी तो पहना दी पर ताज नहीं पहनाया. पत्रकार भौंचक. अपनी जाति भी बता दी. फिर भी स्वामी का दिल नहीं पसीजा. हारकर नेताजी घर लौट आए. अपनी पुरानी बिरादरी के पास. पत्रकारों के पास.
पर यहीं ट्रेंड है. जैसे ही नेताजी वापस पत्रकार बनने के मोड में आए, वह फेसबुक पर सक्रिय हो गए. कुछ पुराने पत्रकारों को लेकर भ्रमण भी कर लिया कि तस्दीक हो जाए, राजनीति छोड़ दी है. घूमा-घुमाई की फोटुक और वीडियो फेसबुक पर डालने लगे या डलवाने लगे. कभी नहाने की फोटो तो कभी दिल का हाल. सब कुछ जनता को बताने-दिखाने लगे. कि मैं ऐसा होता तो कैसा होता और ये मेरा बचपन और ये मेरी जिदंगी और भी पता नहीं क्या-क्या !!!
बॉटम लाइन ये है कि नेताजी ने जैसे ही नेतागीरी छोड़ी, पत्रकार का लबादा दोबारा ओढ़ा और एलीट सर्कल से बाहर आए, आम आदमी के बीच सक्रिय हो गए. लोगों से संवाद करने लगे.
यही इस देश की विडम्बना है. जनता का प्रतिनिधि यानी नेता जनता से कटा हुआ है. वह खुद को शासक समझता है और जनता से संवाद सिर्फ हाथ जोड़कर वोट मांगने के लिए करता है. जबकि होना ये चाहिए था कि नेता को जनता से ज्यादा जुड़ा होना चाहिए था. पत्रकार से भी ज्यादा. हां, पत्रकार आज भी मिशन पर है और हर पल जनता से जुड़ा हुआ है. जनता से उसका संवाद कायम है, देश की नब्ज समझ रहा है.
आज की पत्रकारिता और नेतागीरी में यही फर्क है. नेता जनता से कटा होता है और पत्रकार जनता से जुड़ा होता है. पत्रकार से नेता बने और फिर पत्रकारिता की ओर लौटने का प्रयास करते व्यक्ति ने अपने कर्मों से इसे साबित किया…..
अगली कड़ी में फुर्सत के कुछ यादगार पल… #OP_Chaudhary जी
युवा आपसे प्रेरणा लेंगे, पहले आईएएस के लिए लेते थे. अब शायद रणजी ट्रॉफी के लिए प्रेरणा लेकर बच्चों का चयन हो जाए।
प्रेरणा कहीं से भी हो, लेकिन आती रहनी चाहिए, जैसे कृपा (निर्मल दरबार) आनी शुरु हो जाती थी लेकिन रुक गयी, उस तरह की नहीं!!
कोई बात नहीं! माटी की सेवा कई तरह से की जा सकती है, आप कुछ अलग अंदाज में करेंगे, शायद शुरु भी कर दिया होगा।
विरोधियों पर कहर बनकर टूटने का मौका इस बार जनता ने नहीं दिया शायद अगली बार जनता की मैहर आप पर हो…. हम जो सोचते हैं कई बार वो वापस मिल जाता है, प्यार से प्यार, कहर से कहर, अगर मैहर की सोंचे तो शायद मैहर… कोशिश होती रहनी चाहिए।
सहवाग भी बोलरों पर कहर बनकर टूटते थे, अब शायद आप भी बाल पर बल्लेबाजी से जमकर कहर बरपा सकते हैं।
कलेक्टरी के दौर में, प्रदेश में भ्रटाचार चरम पर रहा काश उस पर भी एक आध बार कहर बनकर टूटे रहते तो वो भी कोई कम चैलेंजिंग नहीं होता! मजा ही आ जाता!
कोई बात,नहीं वो बात रह गयी! लेकिन जितना भी आपने काम किया, लोग याद रखेंगे!
अब जीतकर के या हारकर के, जो भी हो, इस बाजीगरी ने आपको सपनों का बाजीगर तो बना ही दिया है!!
शायद! कल आपकी जीत हो, फिर से लोग आपको सलाम करें!
हमें तो कलेक्टर वाला, ‘सर’ ही पसन्द है
नेता वाले ‘भैया’, को धुरिहा से जोहार हे!!
शुभकामनाएं! आनंदित स्वस्थ प्रसन्न रहिए!!
लेख के इस भाग को 25 अगस्त 2018 को लिखा गया था, जब, पूर्व कलेक्टर व भाजपा विधायक ओम प्रकाश चौधरी के, कलेक्टरी से इस्तीफा देने के बाद लिखा गया था… इस लेख में आगे उनकी दशा और दिशा क्या हो सकती है इस पर विश्लेषण किया गया था… प्रस्तुत है कुछ अंश…
“अब आ ही रहे हैं तो आपका विजन किसी छोटे मोटे नेता के रूप में पूरा नहीं हो पाएगा। एजुकेशन हब का विजन आप सीधे मुख्यमंत्री के उच्च दायित्व को पाकर पूरा कर सकते हैं, इसपर ध्यान दे सकते हैं। इससे छोटी कुर्सी और क्या होगी। आपसे बेहतर मुख्यमंत्री भविष्य में और कौन होगा, शानदार कलेक्टरी, जाबाज प्रशासनिक अधिकारी। लेकिन अभी ये सब दूर के ढोल सुहावने जैसा है। इसे पूरा किया जा सकता है और मुझे आपकी योग्यता पर पूरा यकीन है, आपमें जबरदस्त ऊर्जा और जुनून है।
आपने बहुत बड़ा फैसला लिया है, आपके सारे चाहने वाले स्वागत भी कर रहे हैं और डर भी रहे हैं।
मेरे मन में भी एक प्रश्न है। बस आपके साथ राजनीतिक धोखा नहीं होना चाहिए जैसा आम आदमी पार्टी के आशुतोष के साथ हुआ। दूध भी गया, दुहना भी गया। हाई सैलेरी की पत्रकारिता पद सब गया और अब नेता भी नहीं रहे।
लेकिन आपमें दम है। जो काम एक कलेक्टर के रूप में नहीं कर पाए मेरी शुभकामनाएं हैं कि वो काम आप एक जनप्रतिनिधि के तौर पर करें। और जैसा आपने स्वयं का स्वर्णिम काया कल्प किया ठीक वैसे ही आप छत्तीसगढ़ का कायाकल्प करने में सफल हो, जबर जोहार।
आदरणीय छत्तीसगढ़ के रतन बेटा
श्री ओ पी चौधरी जी, कलेक्टर रायपुर”
आपका परम् हितैषी
AMIT K.C. छत्तीसगढ़िया
https://www.facebook.com/amitchauhanktu
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