कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय शिक्षा का मंदिर न होकर राजनैतिक अखाड़ों का दंगल बन गया है| यही वजह है कि पिछले कुछ महीनों से अतिथि प्राध्यापकों की भर्ती को लेकर चलने वाला विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है| एक और जहां कुछ विभागों द्वारा नियमों का हवाला देकर योग्य शिक्षकों को दरकिनार किया जा रहा है तो वही दूसरा विभाग में नियमों को अनदेखा करते हुए राजनैतिक पार्टियों से संबंध रखने वाले अपने प्रियजनों को शिक्षण के लिए अतिथि प्राध्यापक हेतु आमंत्रित किया कर रहा है| अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि एक ही विश्वविद्यालय के अलग-अलग विभाग के लिए विश्वविद्यालय कैसे अलग-अलग नियम का निर्धारण कर सकते हैं?
ज्ञात हो कि पिछले दिनों अतिथि प्राध्यापकों की चयन सूची मैरिट के आधार पर निकाली गई थी, जिसने यूजीसी के अनुसार पीएचडी,नेट, एमफिल को प्राथमिकता देने की बात कही गई थी | साथ ही यूजीसी के नियम के अनुसार योग्यताधारी उम्मीदवारों की उपलब्धता न होने पर पीजी में मेरिट लिस्ट के आधार पर चयन किया गया था| इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उम्मीदवारों से 2 दिन के भीतर दावा आपत्ति की मांग की गई थी| अत: पूर्व से कार्यरत विश्वविद्यालय के सभी अतिथि प्राध्यापकों ने विश्वविद्यालय प्रशासन को आवेदन लिखकर व हाईकोर्ट के आदेश की प्रति के साथ यह सूचित किया था कि प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा लागू आदेश के अनुसार किसी भी अतिथि प्राध्यापक को उनके समकक्ष योग्यता रखने वाले नए उम्मीदवार के स्थान पर रिप्लेस नहीं किया जा सकता| अत: आवेदन में यह मांग की गई थी की पुराने अतिथि प्राध्यापकों के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए इसे चयन के आधार में जगह दी जाए| आवेदन के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा आश्वासन दिया गया कि कोर्ट की आदेश की पूरी तरह पालन की जाएगी व अनुभव को ध्यान में रखते हुए पुराने अतिथि प्राध्यापकों को प्राथमिकता दी जाएगी| किंतु विभागों में जमे हुए विभागाध्यक्षों को यह बात हजम नहीं हुई और उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ ही कोर्ट के आदेश को भी पूरी तरह नकारते हुए या यह कहें की कोर्ट के अवमानना की कोशिश करते हुए सीधे-सीधे अपने नियमों के अनुसार अतिथि प्राध्यापकों को नियुक्त करना शुरू कर दिया| इसका खुलासा जारी की गई अतिथि प्राध्यापकों की फाइनल लिस्ट से हुआ| विभागों द्वारा धीरे धीरे अपने प्रिय अतिथि प्राध्यापकों को आमंत्रित करने का कार्य शुरू किया गया| एक साथ लिस्ट घोषित करने के स्थान पर अपने अनुसार प्रिय जनों को फोन लगाकर आमंत्रित किया जाने लगा जिसमें निर्धारित अथवा चयनित उम्मीदवार को छोड़कर अन्य लोगों को आमंत्रित करने का कार्य किया गया| एक विभाग जहां अनुभवों को जोड़े बिना ही नए अतिथि प्राध्यापकों को पुराने अतिथि प्राध्यापकों की जगह रिप्लेस करने में लगा हुआ है तो वही दूसरा विभाग यूजीसी नॉर्म्स को कचरे के डब्बे में डालते हुए, पीएसडी धारी को अपने लिस्ट से खारिज कर बैठा है | अब सवाल यह उठता है कि यहां विभागों द्वारा किस आधार पर अतिथि अध्यापकों का चयन किया जा रहा है? क्योंकि सभी विभागों में विभागाध्यक्ष द्वारा अलग-अलग नियमों का हवाला पेश किया जा रहा है|
विभागाध्यक्षों की मनमानी का गंदा नाच तब देखने को मिला जब एक-एक करके विश्वविद्यालय के सभी विभागों ने अपनी अपनी विभागों के अतिथि शिक्षक से संबंधित सूची की पत्ते खोलें| अगर विभाग अनुसार बात की जाए तो सबसे पहले जनसंचार विभाग में जारी कई गई मेरिट लिस्ट को पूरी तरीके से अनदेखा किया गया है जिसमें पीएचडी धारी उम्मीदवार को लिस्ट से रिजेक्ट कर दिया गया है और उसे रिजेक्ट करते हुए उनके बाद के या कहा जाए कि चयन सूची से बाहर होने वाली अपने प्रिय अतिथि प्राध्यापकों को आमंत्रित कर कक्षा लेने का कार्य प्रारंभ भी कर दिया गया है| वही प्रबंधन विभाग में एक ऐसे उम्मीदवार को काम में रखे जाने की बात की जा रही है जिसका फॉर्म शुरुआत से ही रिजेक्ट दिखाया जा रहा था| निरस्त हुए फॉर्म वाले उम्मीदवार की विभागाध्यक्ष से नज़दीकियां होने के चलते खामियाजा पहले से ही कार्यरत पुराने अतिथि अध्यापक को उठाना पड़ा और उसे चयनित होने के बावजूद बाहर का रास्ता दिखा दिया गया| वही जनसंपर्क एवं विज्ञापन विभाग तो शुरुआत से ही राजनैतिक व संघी विचारधारा का गढ़ माना जाता रहा है| एक बार फिर इस विभाग के विभागाध्यक्ष ने ऐसे उम्मीदवार को चयन कर इस तथ्य को सत्य भी साबित कर
दिया है| सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जनसंपर्क एवं विज्ञापन विभाग के विभागाध्यक्ष एक ऐसे उम्मीदवार को आमंत्रित किए हैं जो कि बीजेपी सरकार का सक्रिय सदस्य है और जिसे पार्टी के तरफ से सदस्यता क्रमांक भी प्रदान है| कोई व्यक्ति किसी राजनैतिक पार्टी से सदस्यता हासिल करने के बाद नियमानुसार किसी सरकारी संस्थान में कार्य नहीं कर सकता| किंतु विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग के विभागाध्यक्ष स्वयं बीजेपी एवं संघी विचारधारा के पोषक रहे हैं तो वह नियम तोड़ सकते हैं पर अपने भाई साहब को छोड़ नहीं सकते| ज्ञात हो कि इससे पूर्व जब विश्वविद्यालय द्वारा अतिथि अध्यापकों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया गया था तो विश्वविद्यालय ने विभिन्न बिंदुओं में आवेदकों के लिए कुछ नियम एवं शर्तें निर्धारित की थी जिनमें से एक बिंदु में यह कहा गया था कि आवेदक किसी भी सरकारी, गैर सरकारी संस्था या संगठन से संबंधित नहीं होना चाहिए| किंतु जनसंपर्क एवं विज्ञापन विभाग द्वारा चयनित उम्मीदवार को देखते हुए लगता है कि बाद में जब यह नियम इसीलिए ही हटवाया गया था| ताकि प्रिय एवं समतुल्य विचारधारा रखने वाले लोगों के लिए राह आसान हो जाए| अब इसमें किसका कितना हाथ था शायद यह कहने की आवश्यकता नहीं| इन सब से परे विश्वविद्यालय के विद्यार्थी अब तक कक्षा प्रारंभ न होने की स्थिति में कैंपस में भटकते हुए पाए जा रहे हैं| राजनैतिक दंगल में यहां के लोग इस बात को पूरी तरह नकार दिए हैं कि इन सब कारणों से बेगुनाह विद्यार्थियों की शिक्षा पूरी तरह बाधित हो रही है| तो वही नवनिर्वाचित, नई नवेली सरकार भी यहां के सारे कर्मकांडों को जानने के बाद भी हाथ में हाथ धरे हुए बैठी हुई है |
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