सामान्य (जनरल) जिसमें ईसाई, मुस्लिम, जाट, गुज्जर, पटेल, ब्राह्मण, सिंधी, बनिया, मारवाड़ी, राजपूत, कपूर, पारसी, जैन आदि अर्थात 50% आरक्षित के अलावा सभी आर्थिक कमजोर, सभी अनारक्षित वर्ग शामिल हैं।
इसमें केवल गरीब लोग न कि केवल एक धार्मिक व जातिगत लोग… लेकिन, लगातार मीडिया में सवर्ण-सवर्ण ढोल पिटवाया जा रहा है!
जिसका एकमात्र कारण है, वोट!, सियासतदार डर गए हैं, उनके वोट बैंक से, अब जबरन एजेंडा सेटिंग, के तहत, प्रोपेगेंडा फैलाने का काम, मीडिया ने फिर शुरू कर दिया। मतलब गरीबों से नहीं, मतलब सवर्णों से है।
लेकिन आजकल सारी राजनीति दो मिनट में एक्सपोज़ हो जाती है इसलिए तगड़ा होमवर्क कर लेना चाहिए।
क्योंकि भाजपा के कई मंत्री यहां तक कि जेटली भी संसद में कह चुके हैं कि सभी जाति वर्ग (sc st obc के बाहर) आएंगे तो ईसाई और मुस्लिम में, ये स्वर्ण शुद्र वाला कॉन्सेप्ट नहीं चलता भाई! किसे मूर्ख बना रहे हैं।
और आर्थिक आधार पर गरीब लोगों को 10% आरक्षण उनकी गरीबी के आधार पर दिया जा रहा है न कि जातिगत, हाँ! उन्हें मिलेगा जिनको पहले लाभ नहीं मिल रहा था।
मगर, नियत पे शक उसी समय हो जाती है, जब कोई बिल आनन फानन में लेकर आ जाएं, जैसा कि अक्सर होता गया है। इसका क्या मतलब है, भलाई नहीं है। सिर्फ चुनावी स्टंट?
चलिये अगर गरीबों की भलाई के लिए लाए हैं तो कम से कम उसका जातीय ध्रुवीकरण तो न करिये, लेकिन नहीं करेंगे, तो इस खिचड़ी का फायदा क्या!! बस इन सभी कूटनीतिक चालों में रायता न फैल जाए!
राज्यवार नौकरियों में आरक्षण, लेकिन आजतक बैकलॉग भरे नहीं गए और ये महज कागजी रह गए। सरकारी नौकरी में ऐसा कहा जाता है महज 4 फीसद हिस्सेदारी है sc st का। TOI के अनुसार 93% निजी कॉरपोरेट मैनेजर में non st sc एम्प्लोयी हैं। 80% लोग राजस्थान में अपने जातिगत पेशे वाले काम को करने को मजबूर हैं।
आरक्षण! कागजों में तो है लेकिन असल में सच्चाई में वैसा कुछ है नहीं। महीन तरीके से आउटसोर्सिंग, निजी आदि तरीके से तोड़ दिया गया। एक्का दुक्का पोस्ट निकाल कर। बड़ी चालाकी से!
निजी सेक्टर में ज्यादा मौके हो सकते हैं। वहां भी रास्ते बंद हैं। अगर होता तो देश तरक्की की राह में होता, इस देश में जितनी सरकारें कंफ्यूज दिखती रहीं हैं उतना तो ब्रेकअप करने वाला कपल नहीं होता है।
अजब-गजब || 10% आरक्षण का जादुई खेल
– 95% भारतीय परिवारों की वार्षिक आय 8 लाख से कम है.
– 86.2% लोगों के पास 2 हेक्टेयर व 5 एकड़ से कम जमीन है.
– 20% जनसंख्या के पास रहने के लिए 45.99 sqm एरिया से कम है।
तो अब क्या कहें, मैं भी भारत, तू भी भारत! वो गरीब है, मैं गरीब हूँ, हम सब गरीब हैं, पूरा देश गरीब है!!
इस तरह से इस कोटे में प्रत्येक भारतीय के लिए मचलने के लिए योग्य पर्याय संघर्ष वाली जगह है।
“आर्थिक आधार पर” लेकिन!
अत: तमाम सबूतों और गवाहों के आधार पर, 90% सवर्ण वर्ग को 10% आरक्षित सीट के लिए जबरदस्त संघर्ष करना पड़ेगा।
52% अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% में अफीम वाले लॉलीपॉप से सुला दिया गया, या कहें निपटा दिया गया।
नए बहस की शुरुआत… लग गया तो तीर, नहीं तो तुक्का… अनेक राजनीतिक बुद्धिजीवी वर्गों को लग रहा है, इसका राजनीतिक लाभ नहीं मिल पाएगा। उल्टा वोट बैंक छिटकेगा। घमासान होने वाला है, सब दौड़ पड़ेंगे। 2019 तय कर देगा हाथ में क्या आया, 100/100 या नील बटे सन्नाटा!!
Credit: DB
मेरे दोस्त प्रभानन्द का कहना सही है। फिर से जनता और इस देश की मीडिया असल जरूरी मुद्दों को भूलकर, आरक्षण पे चिल्लम चिल्ली करने लगेगी। ये एजेंडा सेटिंग चुनाव तक खूब चलेगा और असल नाकामियों को शिफ्ट कर दिया गया है। लेकिन ये राजनीति वाले भी समझ लें आज की जनता उनसे ज्यादा समझदार और पढ़ी लिखी है। लॉलीपॉप और कैडबरी का अंतर उसे अच्छे से पता है। हमारी खुद की और देश की असल समस्या से ध्यान भटका नहीं पाओगे।
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